Saturday, April 24, 2010

गमला में गोभी
एक दिन एगो मित्र की घरे भोजन पर गइलीं। चाय-वाय पीयला की बाद ऊ अपनी छत पर ले गइलन। डीडीए क सबसे ऊपर वाला फ्लैट होखला की वजह से छत उनहीं की हिस्सा में रहे। बड़ा गर्व की साथ देखवलन की देखिए, लोग फूल-पत्ते लगाते हैं, हमने गमलों में सब्जियां उगा रखी हैं। देख के हमरो के अच्छा लागल। चालीस-पचास गो गमला में अलग-अलग किस्म क सब्जी। बैगन, टमाटर, गोभी, मिर्च, धनिया वगैरह। ऊ बतवलन कि ए गमलन की देखभाल खातिर एगो मालियो लगवले बाड़न। देख-सुन के बहुत अच्छा लागल।
कैंची से काट के ऊ ओमे से कुछ बैगन, टमाटर आ एगो फूल गोभी हमरो के दिहलन। फिर देर तक बखान करत रहलन कि आजकल जेवना तरह से बाजार में साग-सब्जी में रासायनिक खाद क इस्तेमाल होखे लागल बा ओसे तरह-तरह क बीमारी बढ़े लागल बाड़ी स। एइसन में अगर घर में सब्जी उगा के खाइल जाव त कुछ त बीमारी से बचल जा सकेला। तर्क त ठीके रहे, लेकिन उनकी घर से लवटत में मन में तरह-तरह क सवाल उठे लगलन स।

जेवना तरह से शहरीकरण की वजह से लगातार जगह क कमी होत जात बा, ओमे ईहे स्थिति आवे वाली बा। ट्यूबेल आ चांपाकल क आविष्कार भइल त कुआं तालाब क पानी पीए क चलन बंद हो गईल। तर्क दिहल गईल कि कुआं की पानी में तमाम तरह क गंदगी रहेले। ओके पीअला से तमाम तरह क बीमारी पैदा होले। त चांपाकल क चलन बढ़ि गईल। बाद में जे लोग कुछ संपन्न रहे ऊ चांपाकल की बोरिंग में मोटर लगवा लीहल। ट्यूबेल क चलन धड़ाधड़ बढ़े लागल। अब नतीजा ई बा कि जमीन की भीतर क पानी सूखे लागल बा। चाहे जेतना ताकतवर मोटर लगा लीहीं, पानी मिलल मुश्किल हो गईल बा। पानी खातिर मारा-मारी मच गईल बा। लोग पड़ोसी से कपरफोरौवल मचवले बा त एगो राज्य दूसरा से गुत्थमगुत्था भइल बा। देसनो की बीच में एगो की सीमा से दूसरा की सीमा में घुसे वाली नदीन की पानी के लेके तनातनी रहे लागल बा।
ओइसहीं लोग गांव छोड़ि के शहर की तरफ भागे लागल बा। शहर में रहे के जगह नइखे। सरकार तमाम कालोनी काटे लागल बा। एक की ऊपर एक घर। दस मंजिला, पंद्र-बीस मंजिला कॉलोनी बसे लागल बाड़ी स। दूर से देखीं त खाली घरे घर दिखाई देला। पेड़-पौधा कहीं छिप गईल बाड़न स। जहां जगह बचल बा ऊहें घर बनावे क योजना बने लागल बा। बड़ी-बड़ी कंपनी सब विशेष आर्थिक जोन की नाम पर गांव क गांव खरीदे लागल बाड़ी स। सब केहू खेत-बारी बेच के शहर की ओर भागल चाहता। खेती में मन कम्मे लोगन क लागता। जे खेती करता ऊ मजबूरी में करता। ना ओसे लागत भर क पईसा मिल पावता, ना ओमे रहे वालन क कवनो इज्जत बा। लेकिन शहर में अइला की बाद लोगन के बुझाता कि गांव में रहला क सुख का होला। ऊहां गरीबी जरूर बा, गंदगी जरूर बा, लेकिन हवा-पानी त शुद्ध मिल जाता। गमला में गोभी बोवला की पीछे कहीं न कहीं गांव क सुख पावे क ऊहे ललक देखल जा सकेले।

लेकिन चिंता ए बात कि का आवे वाला समय में खेती-किसानी सचमुच गमले में सिमट के रहि जाई। जेवना तरह से धड़ाधड़ बहुमंजिला इमारत खड़ा होत जात बाड़ी स आ धरती क सतह लगातार बजरी-सीमेंट से ढंकत जात बा, ओमे पेड़-पौधन खातिर जगह लगातार कम होत जात बा। एगो आंकड़ा की मुताबिक दुनिया की कुल आबादी वाली जगह क चालीस फीसद जमीन क सतह कंक्रीट से ढंक गईल बा। सड़क की किनारे सजावटी पौधा जरूर देखे के मिल जालन स, लेकिन फलदार पेड़ शहरीकरण की योजना में कहीं ना दिखाई देलन स। लोग गमला में बोनजाई लगा के पेड़ क सुख ले रहल बा। ओइसहीं का आवे वाला समय में सब्जी आ अनाज गमलवे में उगावे जाए लागी।