Saturday, March 20, 2010

शुरू में-

गांव-घर से दूर रहत करीब सत्ताईस साल हो गईल। अक्सर कौनो ना कौनो बात पर ऊहां की लोगन की बारे में, रहन-सहन, बात-व्यवहार, हंसी-ठट्ठा क याद आवत रहेले। खासकर, अपनी गांव की लग्गीं चट्टी पर बईठ के लोग जेवनी तरह से बात करेला आ जेवनी-जेवनी तरह से बात करेला- ओमे राजनीति से लेके गांव-गिरांव की समस्या तक पर जेवनी तरह से बिना कवनो लाग-लपेट के बात होत रहेले, लोग केहू क मजाक उड़वला से बाज ना आवेलन- ऊ सब सुने क मन बरोबर करत रहेला। लेकिन दिल्ली की अंग्रेजी माहौल में रहत-रहत भोजपुरी बोले क मौका कमे मिल पावेला। जे भोजपुरी भाषी बा ऊहो अंगरेजिए बोले क कोशिश करेला।
ईहे कुल देखि या सोच के मन भईल की जवनी भाषा में लिखे, पढ़े, बोले क संस्कार मिलल, कठोर से कठोर मजाक करे आ सुने क आदत पड़ल ओ भाषा खातिर कुछ करेके चाही। हिंदी में लिखल-पढ़ल त चलते रहेला। लेकिन जेवनी भाषा से ई सब क संस्कार मिलल ओ भाषा में का कइलीं। ई सवाल काफी समय से मन में उठत रहे। त तय कइलीं कि भोजपुरी ब्लॉग खोलल जाव। नाम चट्टी से बेहतर का हो सकेला।
हमरी इलाका में चट्टी ओ जगह के कहल जाला जहां बस स्टैंड होला आ दू-चार गो चाय-पान-किराना वगैरह क दुकान खुलल रहेली सं। लोग दिन भर ऊहां जांस चाहे ना जांस, सांझ खा जरूर जुटेला। चाय की दुकान पर बइठ के देर-देर ले गलचउरन होत रहेले।
ओइसने चट्टी बसावे की इरादा से ई भोजपुरी क ब्लॉग खोलतानी। आप सब भी आईं, बइठीं, गलचउरन करीं।

1 comment:

  1. भोजपुरी गणराज्यन क भूमि क बानी हवे .एकर रंग जल्दी न उतरी खाड़ीबोली हिंदी में बड़ा लाग-लपेट डाट -डपट ह लेकिन भोजपुरी में त बापों के तू आउर बेट्वो के तू ए तारे ई समतावादी-समाजवादी भाषा हौ

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