धूप
धान के पकावे
बेना
पुरुआ डोलावे
कहीं
तितिर बोले हो
हहरे
हियरा हमार।
चंदा
करे चौकीदारी
चारों
ओर उंजियारी
जहां
नींद में भरोसा
उड़ल
निनिया हमार।
कबले
रही ई नजारा
खेत
गांव के सहारा
केहू
पूछताटे हो
मचल
मनवा
में
रार।
मुंह
बाके दुनिया ताके
सबके
दिल्ली फुसिलावे
कहे
सुनीं सभे हो
गाईं
खुलि के मंगलचार।
घीरल
घटा घनघोर
सूझे
नाहीं कवनो ओर
कबले
बचल रही हो
ई
धान के बखार।
हहरे
हियरा हमार।
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